दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे परिणामित्र का टैप परिवर्तन के बारे में बहुत ही अच्छे तरीके से इन सब के बारे में जानकारी देने वाला हूं| तो चलिए शुरू करते हैं |
परिणामित्र का टैप परिवर्तन-
जब वोल्टेज को लंबी दूरी तक भेजा जाता है तो चालकों में वोल्टेज ड्रॉप होती है जिससे टर्मिनलों पर वोल्टेज कम प्राप्त होती है। इस वोल्टेज ड्रॉप की पूर्ति के लिए टैप परिवर्तित ट्रांसफॉर्मरों का उपयोग किया जाता है। इसकी दो विधियां होती हैं-
(1) निष्कासित भार टेप परिवर्तित विधि
(2) भार के साथ टेप परिवर्तित विधि
भार पर टैप परिवर्तन – चित्र (a) और (b) में भार पर टैप परिवर्तन
प्रबंध दिखाया गया है। चित्र (a) के अनुसार परिणामित्र की द्वितीयक कुण्डलन दो तुल्य समानान्तर कुण्डलनों से बनाई गई है।
न्यूनतम द्वितीयक वोल्टता प्राप्त होती है परंतु द्वितीयक वोल्टता बढ़ाने के लिए किसी एक स्विच S_{1} या S_{2} को खोलकर किसी एक कुण्डलन को परिपथ से बाहर निकाल लिया जाता है। मान लीजिए स्विच S_{1} खोल दिया गया है तो स्विच S_{2} द्वारा नियन्त्रित कुण्डलन पूर्ण धारा वहन करती है जो कि उसके द्वारा प्रसामान्य प्रचालन में वहन की जाने वाली धारा से दुगुनी होती है। अब स्विच S_{1} से नियन्त्रित कुण्डलन की पहले वाली टैपिंग को खोलकर वांछित टैपिंग को सैट करने के बाद स्विच S_{1} को बंद कर दिया जाता है।
अब टैपिंग बदलने के लिए स्विच S_{1} को खोलने के बाद स्विच 1 को खोलिए और वांछित टैपिंग वाले स्विच को बंद कीजिए और तत्पश्चात् स्विच S_{1} को बंद कीजिए। इसके बाद दूसरी समानान्तर द्वितीयक कुण्डलन का स्विच S_{2} को खोलकर उस तरफ की टैप सैटिंग को भी पहले की भांति समान टैप पर सैट कर दिया जाता है और इसके पश्चात् स्विच S_{2} को बंद कर दिया जाता है। इस समय अब दोनों समानान्तर कुण्डलनें भार को परस्पर विभाजित करती है अर्थात् दोनों कुण्डलन समान धारा वहन करती है।
चित्र (b) में भी भार पर टैप परिवर्तन प्रबंध दिखाया गया है जिसमें A और B गतिमान सम्पर्क हैं और C एक चोक कुण्डली या प्रतिघातक है जब चल सम्पर्क A और B डायल स्विच के आसन्न (adjacent) खण्डों के सम्पर्क में होते हैं तो यह कुण्डली C मुख्य कुण्डलन के भाग को लघु परिपथ होने से बचाती है। चित्र में दिखाई गई दशा में परिणामित्र की द्वितीयक कुण्डलन के सम्पूर्ण वर्त परिपथ में हैं और भार धारा टैपिंग 1 से बिन्दु L तक प्रतिघातक C में से होती हुई पहुंचती है। प्रतिघातक में आधी धारा स्विच S, से जबकि इसकी आधी स्विच S₂ में से प्रवाहित होती है C के दोनों अर्ध भागों के चुम्बकत्व वाहक बल (mmf) परस्पर विपरीत होते हैं। साथ ही कुण्डली C प्रेरणिक प्रभाव की होने के कारण उसमें प्रतिरोधी शक्तिहानि नगण्य होती है तथा उसके कम वर्तों के कारण उसमें वोल्टतापात भी अधिक नहीं होती है।

आज आपने क्या सीखा :-
अब आप जान गए होंगे कि परिणामित्र का टैप परिवर्तन इन सभी सवालों का जवाब आपको अच्छी तरह से मिल गया होगा|
उम्मीद करता हूं कि मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी अगर आपके मन में कोई भी सवाल/सुझाव है तो मुझे कमेंट करके नीचे बता सकते हो मैं आपके कमेंट का जरूर जवाब दूंगा| अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई है तो अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ में शेयर भी कर सकते हो |