दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे दिष्टधारा मशीन के बारे में बहुत ही अच्छे तरीके से इन सब के बारे में जानकारी देने वाला हूं| तो चलिए शुरू करते हैं |
दिष्टधारा मशीन –
दिष्टधारा जनित्र व दिष्ट धारा मोटर की संरचना एक जैसी होती है। इसी कारण हम मशीन को जनित्र की तरह काम ले सकते हैं।
संरचना के दृष्टिकोण से देखा जाए तो दिष्ट धारा मोटर व दिष्ट धारा जनित्र में कोई अन्तर नहीं होता है। एक ही दिष्ट धारा मशीन को मोटर तथा जनित्र दोनों प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है। यदि मशीन को विद्युत प्रदाय से संयोजित किया जाता है तो मशीन मोटर की तरह कार्य करके यान्त्रिक बल उत्पन्न करेगी और यदि उसी मशीन को प्रथम चालक के यान्त्रिक बल से चलाया जाए तो वह जनित्र की तरह कार्य करके विद्युत शक्ति उत्पन्न करेगी। अतः दिष्ट धारा मोटर विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करती है।
यद्यपि एक ही मशीन से मोटर और जनित्र दोनों का कार्य किया जा सकता है परन्तु मोटर स्थूल रूप से (roughly) प्रयोग में लाने के लिए पूर्णतया या अपूर्णतया बन्द संरचना की होती है, जबकि जनित्र शीतलन (cooling) के लिए खुली संरचना का बनाया जाता है।
दिष्ट धारा मशीन में क्षेत्र कुण्डलियां तो स्टेटर पर होती हैं परन्तु दिष्ट धारा मशीन में दो ध्रुव के लिए अलग से सरंचना हो जाती है। दिष्ट धारो मशीन के महत्वपूर्ण भाग निम्नलिखित हैं

(1) क्षेत्र चुम्बक : ध्रुव क्रोड, शू व क्षेत्र कुण्डली (Field magnet: pole core, pole shoe and field winding)
(2) योक (Yoke)
(3) आर्मेचर क्रोड (Armature core)
(4) आर्मेचर कुण्डली (Armature winding)
(5) दिपरिवर्तक (Commutator)
(6) बियरिंग (Bearing)
दिष्ट धारा मशीन के भागों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-
(1) क्षेत्र चुम्बक (Field magnet) – क्षेत्र चुम्बक के तीन भाग होते हैं, वे निम्न प्रकार से हैं-
(i) ध्रुव क्रोड
(ii) ध्रुव शू
(iii) क्षेत्र कुण्डली
ध्रुव क्रोड को लोहे व पटलित इस्पात (either soft steel laminated) से बनाया जाता है परन्तु बड़ी मशीनों के लिए ध्रुव क्रोड व ध्रुव शू दोनों ही पटलित इस्पात से बनाए जाते हैं। पटलित ध्रुव शू का आकार गोल होता है व आर्मेचर के पास होता है। ध्रुव क्रोड व ध्रुव शू का पटलित भाग उस सतह पर होता है जहां पर आर्मेचर घूमता है। ध्रुव शू के दो काम होते हैं।
(a) चुम्बकीय कुण्डलियों को आधार प्रदान करना
(b) चुम्बकीय परिपथ का प्रतिष्टम्भ कम करना व शू का अनुप्रस्थ क्षेत्र अधिक होने के कारण वायु अन्तराल में फ्लक्स को समरूपता से फैलाना
क्षेत्र चुम्बक का ऊपरी भाग जो कि नट बोल्ट की सहायता से योक के साथ कस दिया जाता है। उस क्षेत्र चुम्बक में ध्रुव क्रोड व नीचे का भाग शू कहलाता है। इसके अन्दर ताम्र के विद्युतरोधित (Insulated) तारों से कुण्डली बनाई जाती है। क्षेत्र कुण्डली को बनाने के लिए पहले ध्रुव क्रोड के आकार का फर्मा बना लिया जाता है। तत्पश्चात् फर्मे की सहायता से क्षेत्र कुण्डलियां बनाकर ध्रुव क्रोड में फंसा दी जाती है।
(2) योक (Yoke) – यह मशीन का बाहरी कवच होता है, जो कि गोल आकार का होता है। योक को ढलवां लोहे (cast iron) अथवा इस्पात (cast steel) व रोल्ड इस्पात (rolled steel) से बनाते हैं। छोटी मशीनों के योक (yoke) को ढलवां लोहे से व बड़ी मशीनों के योक (yoke) को ढलवां (cast) व रोल्ड इस्पात (rolled steel) से बनाते है क्योंकि इससे मशीन का भार कम होता है परन्तु बड़ी मशीनों के योक दो भागों में ढाले जाते हैं और दोनों भागों को नट बोल्ट की सहायता से जोड़ देते हैं। तब यह मशीन के ध्रुव को यान्त्रिक कर उसकी बाहरी क्षति से रक्षा करते हैं। ध्रुव चुम्बकीय फ्लक्स के लिए निम्न प्रतिष्टक (low reluctance) का पथ प्रदान करता है। ध्रुव क्रोड को योक के साथ जोड़ा जाता है जिस कारण इसे अन्दर से जोड़ना पड़ता है।
(3) आर्मेचर क्रोड (Armature core) – मशीन का जो भाग घूमता है, उसे आर्मेचर कहते हैं। आर्मेचर को चालक से बनाते हैं। आर्मेचर क्रोड बेलनाकार आकृति का लगभग 6.35mm (1/4 इंच) मोटी सिलिकन इस्पात (silicon steel) की वृत्ताकर पटलों का बना होता है इसकी परिधि पर चारों और आर्मेचर संवाहक या कुण्डलन (windings) डालने के लिए खांचे (slots) काटे जाते हैं जिसकी वजह से पटलों को वार्निश या ऑक्साइड् लेपन करके सुखा दिया जाता है और फिर द्रव दाब मशीन (hydraulic press machine) की सहायता से इन्हें बेलनाकार आकृति में बना दिया जाता है। पटलों को पतला बना कर उन पर वार्निश या ऑक्साइड परत चढ़ाने से भंवर धारा पथ का प्रतिरोध बढ़ जाता है फलस्वरूप भंवर धारा हानि कम हो जाती है। बड़ी मशीनों के आर्मेचर क्रोड के अक्ष के समानान्तर वायु छिद्र बना होता है, जो कि आर्मेचर शीतलन में सहायता करता है। आर्मेचर क्रोड मुख्यतया अपनी कुण्डलन को अपने अन्दर स्थापित कर लेती है, जिसकी वजह से आर्मेचर क्रोड अपने चुम्बकीय क्षेत्र में घुमता है, फिर वह इससे गुजरने वाले फ्लक्स को निम्न प्रतिष्टम का पथ प्रदान कराती है।
(4) आर्मेचर कुण्डलन (Armature winding) – आर्मेचर कुण्डली एनैमल्ड ताम्र तार (enamelled copper wire) की बनी होती है। ये कुण्डली पहले फर्म पर लपेट ली जाती है तत्पश्चात् इन्हें ताम्र तार से बने हुए आर्मेचर के खांचों (slots) में डाल देते हैं। कुण्डली को आर्मेचर के खांचों में डालने से पहले खांचों में एम्पायर क्लाथ (empire cloth) ताम्र तार की बनी तथा लेदरॉइड पेपर (leatheroid paper) को लगा दिया जाता है, ताकि कुण्डलन के विद्युतरोधन (insulation) को कोई हानि न पहुंचे। कुण्डलन को डालने के पश्चात् खांचों की लकड़ी को फन्नियों (wedges) से बन्द कर दिया जाता है और कुण्डलन के सिरों (ends) को दिक्परिवर्तक (commutator) से जोड़ देते हैं।
साधारणतया उच्च धारा एवं निम्न धारा वोल्टता के लिए लैप कुण्डली तथा निम्न धारा एवं उच्च वोल्टता के लिए तरंग कुण्डलन (wave winding) किया जाता है। आर्मेचर कुण्डलन के अन्दर चुम्बकीय फ्लक्स को काट कर विभवान्तर उत्पन्न करते हैं व इसकी सहायता से विद्युत धारा को दिपरिवर्तक तक पहुंचाते हैं।
(5) दिपरिवर्तक (Commutator) – प्रश्न 4 का उत्तर देखें।
(6) बुश (Brush) – बुश कार्बन और आयताकार आकार में ताम्र की बनी होती है। इन बुशों को होल्डरों में लगाते हैं, जिसे बुश होल्डर कहते हैं। ये बुश, स्टैण्ड पर बुश योक की तरह लगते हैं। बुश गियर में बुश योक, बुश होल्डर व बुश लगे होते हैं। बुश का काम धारा को दिपरिवर्तक से एकत्रित करना होता है और उसे हम बाहरी परिपथ पर देते हैं, जिससे यह बुश दिपरिवर्तक को उस भाग पर घुमाता है जहां पर बुश लगी होती है। बुश की जो भी जगह होती है उसे हम सेगमेन्ट की सहायता से एक बुश से दूसरी बुश पर लगाते है। इस कारण जो भी कुण्डलन घुमता है, उससे फ्लक्स की लाइन से 90° पर घुमाव होता है। इस कारण विद्युत स्फूलिंग (Electric spark) बहुत अधिक हो जाती है और बड़ी मशीनों से स्फूलिंग दिपरिवर्तक को काफी हानि पहुंच सकती है। अतः बड़ी मशीनों में कार्बन बुशों का उपयोग किया जाता है। कार्बन का प्रतिरोध ताम्र की अपेक्षा अधिक होता है जिससे स्फूलिंग नहीं हो सकती है और साथ ही कार्बन बुश दिक्परिवर्तक के लिए स्नेहक (lubricant) का कार्य करती है।
बुश साधारणतया बक्साकार (Box type) होल्डर में लगा दी जाती है जिसमें दिक्परिवर्तक के साथ सही सम्पर्क बनाए रखने के लिए स्प्रिंग दाब डाला जाता है और बुश का सम्बन्ध पिगटेल (pigtail) संयोजन द्वारा बाह्य परिपथ के होल्डर से कर दिया जाता है।
(7) बियरिंग (Bearing)- आर्मेचर शाफ्ट को देने के लिए या तो बियरिंग बॉल या बियरिंग काम आते हैं। बियरिंग को चलाने के लिए पूरा स्नेहक लगाया जाता है। बियरिंग प्रायः गन मेटल (Gun metal) व बैबिट मैटल (babit metal) से बनाई जाती है। छोटी मशीनों के लिए बॉल बियरिंग या बुश बियरिंग परन्तु बड़ी मशीनों के लिए रोलर बियरिंग उपयोग में ली जाती है।
आज आपने क्या सीखा :-
अब आप जान गए होंगे कि दिष्टधारा मशीन इन सभी सवालों का जवाब आपको अच्छी तरह से मिल गया होगा|
उम्मीद करता हूं कि मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी अगर आपके मन में कोई भी सवाल/सुझाव है तो मुझे कमेंट करके नीचे बता सकते हो मैं आपके कमेंट का जरूर जवाब दूंगा| अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई है तो अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ में शेयर भी कर सकते हो