डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर का वर्णन कीजिए?

दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर के बारे में बहुत ही अच्छे तरीके से इन सब के बारे में जानकारी देने वाला हूं| तो चलिए शुरू करते हैं |

डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर –

डिस्ट्रीब्यूशन –

इस प्रकार के डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर सब स्टेशनों पर लगाए जाते हैं। डिस्ट्रीब्यूशन में 11000 वोल्ट व 66000 वोल्ट को 440 वोल्ट में स्टेप डाउन करके उपभोक्ता को पहुंचायी जाती है। ये छोटे आकार में 5 kVA से 500 kVA तक के एवं बड़े आकार में 500 kVA से 2000 kVA तक होते हैं।

ट्रांसमिशन –

ट्रांसमिशन हेतु स्टेप-अप ट्रांसफॉर्मर प्रयोग में आते हैं। 6.6 kV को 33kV अथवा 132kV तक वोल्टेज को बढ़ाकर ट्रांसमिशन लाइन में गुजारा जाता है।

डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर के मुख्य भाग निम्न हैं-

  1. फिलिंग होल विद कैप
  2. टेम्प्रेचर गेज
  3. एक्सप्लोशन वेन्ट
  4. कन्जरवेटर
  5. ऑयल गेज
  6. ब्रीदर सिलिका जैल सहित
  7. स्टील टैंक
  8. पॉर्सलीन बुशिंग विद सॉकेट
  9. LV साइड केबल बॉक्स
  10. नेम प्लेट
  11. कूलिंग ट्यूब
  12. व्हील
  13. अर्थ प्वॉइन्ट या अर्थिंग प्लग
  14. प्राइमरी व सैकण्डरी वाइन्डिंग

उपरोक्त भागों को चित्र 2 में दर्शाया गया है।

वाइन्डिंग (Winding) –

प्राइमरी व सैकण्डरी दो वाइन्डिंग होती है। प्राइमरी से सप्लाई दी जाती है एवं सैकण्डरी से सप्लाई ली जाती है।

ट्रांसफॉर्मर की प्राइमरी वाइन्डिंग को यदि सैकण्डरी वाइन्डिंग से अधिक वोल्टेज प्राप्त होती है तो इसे हाई टेंशन (HT) वाइन्डिंग कहते हैं एवं यदि सैकण्डरी वाइन्डिंग को प्राइमरी वाइन्डिंग से कम वोल्टेज प्राप्त हो तो इसे लो टेंशन (LT) वाइन्डिंग कहते हैं।

मेन स्टील टैंक (Main Steel Tank) –

इस टैंक को नर्म लोहे की चद्दरों द्वारा बनाया जाता है। इसमें तीन फेज की वाइन्डिंग को रखा जाता है एवं ट्रांसफॉर्मर तेल इसमें भरा जाता है। इस टैंक में कूलिंग ट्यूब दोनों साइड में फिट होती है। इधर-उधर ले जाने हेतु व्हील लगे होते हैं व ऊपर कन्जरवेटर व ब्रीदर इन्सुलेटर्स फिट रहते हैं।

संग्राहक टैंक (Conservator Tank) –

यह कन्जरवेटर टैंक ड्रम के आकार का होता है। यह ऊपर की ओर मेन टैंक के साथ जोड़ा हुआ होता है। यह आधा तेल से भरा रहता है तथा एक पाइप द्वारा मुख्य टैंक के तेल से सम्पर्क में रहता है। कन्जरवेटर टैंक में मुख्य टैंक का गर्म तेल आता है व तेल, कन्जरवेटर में हवा के सम्पर्क में आने से ठंडा होता है। यह नमी रहित ठंडी हवा ब्रीदर में से आती है।

ब्रीदर (Breather)-

यह डिब्बे के आकार का होता है। इसमें सिलिका जैल नाम का एक पदार्थ भरा रहता है। इसमें हवा बाहर से आती है। नमी रहित हवा को कन्जरवेटर में जाने दिया जाता है। इसे कन्जरवेटर से पाइप द्वारा जोड़ा जाता है। ट्रांसफॉर्मर तेल नमी के कारण खराब हो जाता है।

नमी तीन कारणों से आ सकती है। गास्केट के क्षरण से, तेल की सतह के साथ सम्पर्क में वायु से अवशोषण द्वारा, या उच्च ताप पर इन्सुलेशन के खराब होने से तेल में नमी का प्रभाव डाइइलेक्ट्रिक स्ट्रैन्थ को कम करता है। नमी के प्रभाव को खत्म करने हेतु निम्न विधियां होती हैं-

  1. सिलिका जैल ब्रीदर के उपयोग से
  2. रबड़ डायफ्रॉम के उपयोग से
  3. गैस के कुशन के उपयोग से
  4. थर्मो साइफन फिल्टर के उपयोग से

सिलिका जैल ब्रीदर को नमी अवशोषण को रोकने के माध्यम की तरह अधिकतर उपयोग में लिया जाता है। ट्रांसफॉर्मर में फिट कन्जरवेटर श्रीदर तथा ताप में परिवर्तन के कारण वायु के आयतन में परिवर्तन होने देता है। जब ट्रांसफॉर्मर पर भार कम होता है तो सिलिका जैल क्रिस्टल के साथ पैक किए हुए कारतूस में से कन्जरवेटर में वायु खिंची चली आती है।

सिलिका जैल नमी को सोख लेता है। सिलिका जैल यदि नई हो तो यह हल्के गुलाबी या सफेद रंग में मिलती है। यह वायु की नमी को सोखकर नीले रंग की हो जाती है। सिलिका जैल को Recondition करने हेतु सूर्य की रोशनी में सुखाया जाता है।

आज आपने क्या सीखा :-

अब आप जान गए होंगे कि डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर इन सभी सवालों का जवाब आपको अच्छी तरह से मिल गया होगा|

उम्मीद करता हूं कि मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी अगर आपके मन में कोई भी सवाल/सुझाव है तो मुझे कमेंट करके नीचे बता सकते हो मैं आपके कमेंट का जरूर जवाब दूंगा| अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई है तो अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ में शेयर भी कर सकते हो

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